Sunday, 4 March 2018

उत्तर प्रदेश के प्रमुख लोक नाट्य

उत्तर प्रदेश के प्रमुख लोक नाट्य




वर्तमान में प्रदेश के प्रमुख लोकनाट्य : 

रामलीला ,रासलीला व नौटंकी (संगीत) 

 नौटंकी – 

यह उत्तर प्रदेश का लोकप्रिय प्रतिनिधि लोक नाट्य है | इसमें अभिनय और गायकी का अनुपम संगम देखने को मिलता है | इसमें दोहा, सोहिनी, हरि गीतिका, छन्द, लावनी, वीर, कव्वाली, गजल, दादरा, ठुमरी आदि का प्रयोग किया जाता है |
 रासलीला-
 रासलीला उत्तर प्रदेश में प्रचलित लोकनाट्य का एक प्रमुख अंग है। इसका आरंभ सोलहवीं शती में वल्लभाचार्य तथा हितहरिवंश आदि महात्माओं ने लोक प्रचलित, जिस श्रृंगार प्रधान रास में धर्म के साथ नृत्यसंगीत की पुनः स्थापना की और उसका नेतृत्व रसिक शिरोमणि श्रीकृष्ण को दिया था, वही राधा तथा गोपियों के साथ कृष्ण की श्रृंगार पूर्ण क्रीड़ाओं से युक्त होकर 'रासलीला' के नाम से अभिहित हुआ।

रासलीला लोकनाट्य का प्रमुख अंग है। भक्तिकाल में इसमें राधा-कृष्ण की प्रेम-क्रीड़ाओं का प्रदर्शन होता था, जिनमें आध्यात्मिकता की प्रधानता रहती थी। इनका मूलाधार सूरदास तथा अष्टछाप के कवियों के पद और भजन होते थे। उनमें संगीत और काव्य का रस तथा आनन्द, दोनों रहता था। लीलाओं में जनता धर्मोपदेश तथा मनोरंजन साथ-साथ पाती थी। इनके पात्रों- कृष्ण, राधा, गोपियों के संवादों में गम्भीरता का अभाव और प्रेमालाप का आधिक्य रहता था। कार्य की न्यूनता और संवादों का बाहुल्य होता था। इन लीलाओं में रंगमंच भी होता था, किन्तु वह स्थिर और साधारण कोटि का होता था। प्रायः रासलीला करने वाले किसी मन्दिर में अथवा किसी पवित्र स्थान या ऊँचे चबूतरे पर इसका निर्माण कर लेते थे। देखने वालों की संख्या अधिक होती थी। रास करने वालों की मण्डलियाँ भी होती थीं, जो पूनापंजाब और पूर्वी बंगाल तक घूमा करती थीं।

रामलीला-

रंगमंचीय दृष्टि से रामलीला तीन प्रकार की हैं - सचल लीला, अचल लीला तथा स्टेज़ लीला। काशी नगरी के चार स्थानों में अचल लीलाएँ होती हैं। गो. तुलसीदास द्वारा स्थापित रंगमंच की कई विशेषताओं में से एक यह भी है कि स्वाभाविकता, प्रभावोत्पादकता और मनोहरता की सृष्टि के लिए, अयोध्या, जनकपुर, चित्रकूट, लंका आदि अलग-अलग स्थान बना दिए गए थे और एक स्थान पर उसी से संबंधित सब लीलाएँ दिखाई जाती थीं। यह ज्ञातव्य है कि रंगशाला खुली होती थी और पात्रों को संवाद जोड़ने घटाने में स्वतंत्रता थी। इस तरह हिंदी रंगमंच की प्रतिष्ठा का श्रेय गो. तुलसीदास को और इनके कार्यक्षेत्र काशी को प्राप्त है
गोपीगंज आदि में भरतमिलाप के दिन विमान तथा लागें निकाली जाती हैं। इलाहाबाद के दशहरे के अवसर पर रामलीला के सिलसिले में जो विमान और चौकियाँ निकलती है, उनका दृश्य बड़ा भव्य होता है।
पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में सलेमपुर की "सांस्कृतिक संगम" संस्था द्वारा रामायण का मंचन एक नए आयाम में प्रस्तुत किया गया है। इस संस्था का उद्देश्य आजकल रामायण, या रामलीला के नाम से मात्र कमाई का माध्यम बनाने में भाषा की शुद्धता पर ध्यान कम देकर, अश्लीलता का प्रयोग कर समाज को भ्रमित करने वालों के विरुद्ध एक अभियान की तरह कार्य आरम्भ कर आस-पास के क्षेत्रों में ख्याति प्राप्त की है। यह संस्था "रामलीला" शब्द का प्रयोग न कर रामायण मंचन के नाम से प्रस्तुति देती है, ताकि इसमें अच्छे कुलीन घर के लोग, स्त्री एवं पुरुष, दूरदर्शन व सिने कलाकार भी सम्मिलित होकर यह पुनीत कार्य कर सके। इसमें 60 कलाकार भाग लेते हैं। गायक मंडली के साथ प्रकाश एवं ध्वनि की व्यवस्था साथ लिए सोनपुर के मेले में भी विगत दो वर्षों से मेले में आकर्षण के केंद्र बने।

लोकनाट्य की प्रमुख शैलिया :-

रामनगर (काशी , रामलीला ) ,

इलाहाबाद (रामलीला ),

ब्रज (रासलीला ), 

अयोद्धा (रामलीला ),

 हाथरस (नौटंकी ) ,

 कानपुर (नौटंकी )  आदि। 

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